50+ Akbar Allahabadi Shayari | अकबर इलाहाबादी शायरी
अकबर इलाहाबादी जी जिनका असली नाम सैयद अकबर हुसैन था, अकबर इलाहाबादी का जन्म 16 नवंबर 1846 को इलाहाबाद में हुआ था और उनका निधन 9 सितंबर 1921 को हुआ, वे एक आशावादी कवि थे उन्होंने अपनी अधिकांश रचनाएँ उर्दू में लिखीं। क्योंकि उन्हें उर्दू का अच्छा ज्ञान था। आए पढ़ते हैं – Akbar Allahabadi Ki Shayari, अकबर इलाहाबादी शायरी, Akbar Allahabadi Shayari Image का बेहतरीन कलेक्शन.
AKBAR Allahabadi SHAYARI
इस गुलिस्ताँ में बहुत कलियाँ मुझे तड़पा गईंक्यूँ लगी थीं शाख़ में क्यूँ बे-खिले मुरझा गईं.
डाल दे जान मआ’नी में वो उर्दू ये हैकरवटें लेने लगे तब्अ वो पहलू ये है.
आई होगी किसी को हिज्र में मौतमुझ को तो नींद भी नहीं आती
डिनर से तुम को फ़ुर्सत कम यहाँ फ़ाक़े से कम ख़ालीचलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली.ग़म-ख़ाना-ए-जहाँ में वक़अत ही क्या हमारी
इक ना-शुनीदा उफ़ हैं इक आह-ए-बे-असर हैं.
आई होगी किसी को हिज्र में मौत
मुझ को तो नींद भी नहीं आती.
ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता
आँख उन से जो मिलती है तो क्या क्या नहीं होता.
इस क़दर था खटमलों का चारपाई में हुजूम
वस्ल का दिल से मिरे अरमान रुख़्सत हो गया.
ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए
मैं लेटा तो उठ के खड़े हो गए
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
इन को क्या काम है मुरव्वत से अपनी रुख़ से ये मुँह न मोड़ेंगे
जान शायद फ़रिश्ते छोड़ भी दें डॉक्टर फ़ीस को न छोड़ेंगे
आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी.
आशिक़ी का हो बुरा उस ने बिगाड़े सारे काम
हम तो ए.बी में रहे अग़्यार बी.ए हो गए
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है
पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है
जब ग़म हुआ चढ़ा लीं दो बोतलें इकट्ठीमुल्ला की दौड़ मस्जिद ‘अकबर’ की दौड़ भट्टी
2 Line Akbar Allahabadi Shayari
जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख
हुक्म होता है कि अपना नामा-ए-आमाल देख.
जल्वा न हो मअ’नी का तो सूरत का असर क्या
बुलबुल गुल-ए-तस्वीर का शैदा नहीं होता.
अब तो है इश्क़-ए-बुताँ में ज़िंदगानी का मज़ा
जब ख़ुदा का सामना होगा तो देखा जाएगा.
अगर मज़हब ख़लल-अंदाज़ है मुल्की मक़ासिद में
तो शैख़ ओ बरहमन पिन्हाँ रहें दैर ओ मसाजिद में
तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार की
दूध तो डिब्बे का है तालीम है सरकार की
इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी
ज़ालिम में और इक बात है इस सब के सिवा भी
तय्यार थे नमाज़ पे हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर
जल्वा बुतों का देख के नीयत बदल गई
जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
यही लड़के मिटाते हैं जवानी को जवाँ हो कर
तुम नाक चढ़ाते हो मिरी बात पे ऐ शैख़
खींचूँगी किसी रोज़ मैं अब कान तुम्हारे
क्या वो ख़्वाहिश कि जिसे दिल भी समझता हो हक़ीर
आरज़ू वो है जो सीने में रहे नाज़ के साथ
एक काफ़िर पर तबीअत आ गई
पारसाई पर भी आफ़त आ गई
AKBAR ALLAHABADI Shayari In Hindi
उन्हें भी जोश-ए-उल्फ़त हो तो लुत्फ़ उट्ठे मोहब्बत का
हमीं दिन-रात अगर तड़पे तो फिर इस में मज़ा क्या है
इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है
ज़रूरी चीज़ है इक तजरबा भी ज़िंदगानी में
तुझे ये डिग्रियाँ बूढ़ों का हम-सिन कर नहीं सकतीं
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ .
तुम्हारे वाज़ में तासीर तो है हज़रत-ए-वाइज़
असर लेकिन निगाह-ए-नाज़ का भी कम नहीं होता
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना है ऐ ‘अकबर’
यही वो दर है कि ज़िल्लत नहीं सवाल के बा’द
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